शिव के नाग' और 'आज के नागों' में बड़ा भारी भेद है ....
पहला हमारी गलती से हमें डसता है और दूसरा बिना गलती हमें रोज डसता है ..... शिव के नाग के डसे का तो उपचार भी हो जाता है लेकिन आज के नागों के डसने का कोई उपचार उपलब्ध होता नहीं दिखता ... शिव के नाग के डसने से तत्क्षण मृत्यु भी होती है लेकिन आज के नागों के डसने से हम रोज तिल-तिल , घुट-घुट कर मरते हैं ..... शिव के नाग को उसकी शारीरिक बनावट के कारण पहचान कर हम सचेत हो सकते हैं लेकिन आज के नागों का रूप-भेद बहुत मुश्किल है क्यूँकि वो हमारे जैसे ही दिखते हैं ..... शिव का नाग हमें खुद से दूर रखने के लिए फन फैला कर फुफकारता है लेकिन आज के नाग तो हमें पुचकार कर , अपने समीप बुलाकर डसते हैं .... शिव के नाग की जहर की ग्रंथि को हटाकर उसे विषरहित बनाया जा सकता है लेकिन आज के नागों में कोई ग्रंथि नहीं होती अपितु पूरा शरीर ही जहरीला होता है .... शिव के नाग तो चूहों का सफाया कर हमारी मदद भी करते हैं वहीं आज के नाग तो हमें ही चूहा समझ हमारे सफाये में ही जुटे हैं ..... आईए .....ऐसे में नागपंचमी के पावन अवसर पर शिव के नाग से ये वंदना करते हैं कि " हे नाग-देवता हम रोज - रोज आज के नागों के दंश से क्यूँ और कितना मरें ....आप आज के नागों का कुछ कर सकते हैं तो करें ..??"
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सच है, हम लेखक और कवि नहीं हैं ― पर भावनाए रखता हूँ।
अतीत के पन्ने पलट कर देखे तो कुछ लम्हे आज भी हमें पुकारते हैं, अतीत के पन्नों से आज भी खुशबू आती है। तुम्हारे साथ गुजरे क्षणों की याद आज भी आती है। हाँ! मैं कल की बात नही करता पर पूर्ण आज में भी नही जीता। अब तो हम बस , कुछ वहमों के सहारे जिंदगी गुजारते हैं। कभी-कभी बिखरा सा अतीत सुहानी खुशबू से दिल भर देता। वक़्त के आगे सब मज़बूर होते गए, धीरे-धीरे सब दूर होते गए। कुछ सालों बाद नजाने क्या समां होगा, ना जाने कौन दोस्त कहाँ होगा।। आज दिल से एक आह निकलती हैं― "मैंने तुझसे कुछ ख़ास तो माँगा नहीं है, ए ज़िन्दगी, फिर क्यूँ तू किश्तों में, सब कुछ छीना करती है?" दोस्तों आप जहाँ भी रहो, हमेशा खुश रहो। हमारे रिश्तों में भले प्यार कम हो पर दोस्ती काम ना हो। बहुत याद आती है गुजरे लम्हें, काश वो वक़्त फिर से लौट आता हमारे जिंदगी में। हैप्पी फ्रेंडशिप डे टू ऑल ऑफ़ यू। →ई० सुमित कुमार अकेला |
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